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ना थकें कभी पैर

 ना थकें कभी पैर ना हिम्मत हारी है, हौंसला हैं ज़िन्दगी में कुछ कर दिखाने का, इसलिए अभी भी सफ़र जारी हैं।

जिधर देखूं स्वार्थपरायण संचार था।

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देखा मैंने चुनावी चक्रपात, जरुरत में होते कौन निसोत, कौन निकृष्ट सुधर रहें, बड़ी-बड़ी गाड़ी से उतर रहें।                उम्मीद किस पर विषाद, धन के होते प्रतियुद्ध, कह दो प्रपंचकारी से, अलसी कपटी हड़ताली से। संघर्ष में लथ-पथ अनपराध, पराधीन आदि समझो विमुग्ध, छल-प्रपंच सबको प्रश्रय गया है, कह दो सत्य घर में हार गया है। सर्वत्र विमुख तनाव पूर्ण में, देखा विलक्षण संसार असार में मुखड़ा पर निष्ठुरता प्रलोभ था, जिधर देखूं स्वार्थपरायण संचार था।