देखा मैंने का मंजर
देखा मैंने वह मंज़र,
अपनी उस बर्बादी का।।2।।
मैं ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर कहा,
दिया प्रमाण निर्दोष का।।देखा.....
फिर भी निगाहें मुझपर सबकी,
इशारा दिया गुरूर ने का।।देखा.....
किसी की झुठी अफ़वाहें ने,
साज़िश मुझे गिराने का।।देखा.....
और सर पर बोझ अंधकारों की,
सामना अपने यारों का।।देखा.....
कोई बताए मुझे मैं क्या करूं,
ताल्लुकात मेरे ही यारों का।।देखा.....
दुश्मन से तो टक्कर ली सौ-सौ बार,
अब सामना अपने रिश्तेदारों का।।देखा.....
मेरी पीठ में खंज़र उतारा,
लिहाज़ा ज़ाहिलो का।।देखा.....
और कय़ामत मेरी जिंदगी पर,
साया गद्दारों का।।देखा.....
रचनाकार:-
Comments
Post a Comment