रवीन्द्र साहब Ravindra saheb
!!ओ३म्!!
हमारे सद्गुरु रवीन्द्र साहब
[लेखक] {आदित्य आर्य सिन्हा}
प्रकाशक कबीर सदन विचार प्रचार ट्रस्ट
पूरानानकार बलहा, मुजफ्फरपुर। Email.:- K.sadanBalha@gmail.com Webside:- kspbvicharprachar.blogspot.com
लेखकाधीन
प्रथम संस्करण- 2022 मार्च 29
प्रकाशक -
कबीर सदन विचार प्रचार ट्रस्ट। पूरानानकार बलहा पो०:- थरमा, मुज० मो० 7547840542
टाइपिंग एण्ड डिजाइन
आमित कुमार गुप्ता
मंगलमय मंगल करण, बौआ गुरु करुणामय। चरण सरोज कृपा से, भये सहज सुखदमय।।
संतन चरण सरोज रज, निज मस्तिष्क सुधार। वर्णन करु रवीन्द्र यश, मिटै कुसंग हमार।। (आदित्य आर्य सिन्हा)
गुरुवर सरकार हंसते-हंसते, आई बहार हंसते-हंसते परम दयालु आया, त्रिभुवन का फूल आया।। भरौड़ा सरकार हंसते-हंसते..... नाथों का नाथ आया, करने सरनार्थ आया।। सिष्ट्री सुधाड़ हँस्ते-हँस्ते....... भक्तों का त्यौहार आया, त्रिभुवन अनुराग आया।। प्रयोजन का प्यार हंसते-हंसते....... आदित्य का भगवान आया, सभी का ध्यान आया।। शिष्यजन का सार हंसते-हंसते....... भक्ति अवध में आके, अंजनी के लाल कहाके।। गिरिवर कुमार हंसते-हंसते...... शर्मंद को ले आया, बंधुओं को संग लाया।। अब भाए जय-जय कार हंसते-हंसते.......
इनकी माता सद्गुरु बौआ साहब के निकट इसकी चर्चा की। उन्होंने इनकी मां को बहुत समझाया ऐसा नहीं होगा। लेकिन मां को बार-बार कहते रहने से उन्होंने कहा ये लड़का मुझको दे दें। मैं अपनी लड़की से इनकी शादी करुंगा। अब तो विश्वास होगा। जब दरवाजे पर आये तो इनके बाबा श्री मधुसूदन बाबू से कहे आप अपना पोता मुझे दे दें मैं अपनी लड़की से इनकी शादी करुंगा। श्री मधुसूदन जी ने कहा आपकी आज्ञा शिरोधार्य हैं।
सद्गुरु बौआ साहब हैं, संकट परे हजूर। चरण कमल पर सिर धरूं, भवसागर से दूर।। (भजन-सुधा-सार-19 रवीन्द्र साहब)
सद्गुरु बौआ साहब रवीन्द्र साहब जी को अपने घर पर बुलाय और इनके हस्तरेखा देखा कहें। आप मेरे सामने प्रतिज्ञा करें आज से कभी किसी से अपना हाथ नहीं दिखलायेगें। इन्हें प्राणायाम सिखाये। तभी से अबतक ये परिणाम करते आ रहे हैं।
सन् 1966 में ये मैट्रिक पास किये। उसके बाद इन्होंने प्री साइंस में नाम राम दयाल सिंह कॉलेज में लिखावाये परम पूज्य बौआ साहब जू 1966 ईस्वी में ही इन्हें गुरु मंत्र देकर साधना करने की विधि बताई और ये गुरुवचना नुसार अब तक अपनी साधना में तल्लीन रहते हैं।
भगति भजन हरि नाम हैं, दूजा दु:ख अपार। मनसा वाचा कर्मना, कबीर सुमिरन सार।। "कबीर"
रवीन्द्र को सद्गरु मिला, शब्द दिया उपदेश। भौसागर से काढ़ि के, लाया अपने देश।। (भजन-सुधा-सार-20 रवीन्द्र साहब)
सन्- 1967-69 सत्र मैं यह टीचर्स ट्रेनिंग किये। 1968ई० के 8 फरवरी को इनकी शादी सद्गुरु बौआ साहब की पुत्री श्रीमती प्रवीणा देवी के साथ कबीर आश्रम भरवारा दरभंगा के प्रांगण में हुई। जिनसे इन्हें दो पुत्र एवं पांच पुत्रियां हुई।
सन् :- 15-10-1973 को इनकी नियुक्ति शिक्षक पद पर हुई। 28-02-2011 को सेवा निवृत्त हुवे। ये बड़े ही सफल शिक्षक थे। कभी विद्यालय न लेट से गये नाहिं समय से पहले आये। कोई भी पदाधिकारी इनको कभी भी नहीं अनुपस्थिति पाये। क्योंकि ये गुरुवचन पर चलने वाले व्यक्ति थे सद्गुरु बौआ साहब ने इन्हें वचन दिया कि पाहुँन सबसे बड़ी भक्ति हैं, अपनी ड्यूटी निभाना यही सच्चा मित्र भी हैं, ड्यूटी अवधि में इन्होंने आई०ऐ० बी०ए० तक की परीक्षा पास कर ली।
सदगुरु बौआ साहब रवीन्द्र साहब जी से बड़ा ही प्रसन्न रहते थे। इनके विचार को देखकर वे इन्हें शिष्य बनाने का वचन, किसी को विवाह कराने, किसी का श्राद्ध कराने, किसी को मुंडन कराने, किसी को घर का नीव एवं घरवास कराने को आदेश दे दिये। ये इन कामों में इतने तल्लीन रहते थे कि लोग इन्हें बराबर अपने यहांँ बुलाकर आदर के साथ इन्हें विदा करते थे। सद्गुरु बौआ साहब ने इन्हें इतना तक बचन दे गये कि आप अपने शिष्यों में जिनपर आपको पूर्ण विश्वास हो जाय, तो उसे भगवन नाम भी लखा देगें। इस कदर ये बहुतों को गुरु मंत्र भी प्रदान किये।
रवीन्द्र गुरु ज्ञानी मिला, ज्यों पानी में लौन। मैं मेरा कुल मिट गया, नाम धरेगा कौन।। (भजन-सुधा-सार-01 रवीन्द्र साहब)
कबीर पंथियों में महात्मा का वचन मिलता हैं, गुरु के द्वारा या किसी महात्मा के द्वारा। सद्गुरु बौआ साहब इन्हें महात्मा का वचन इन्हें नहीं प्रदान कर पाये, क्योंकि उनका देहावसान दिनांक:- 18 नवंबर 2009 को हो गया। तो उन्हीं के द्वारा बनाये गये महात्मा श्री श्री 108 श्री महात्मा सदानन्द साहब उधवपट्टी ने श्री रवीन्द्र साहब जी को भरवारा भंडारा के द्वितीय सत्र दिंनाक:- 13 दिसम्बर 2013ई० के दिन में श्री रामवृक्ष जी के घर में महात्मा होने का वचन दिया। वहांँ श्रीमती उनकी पत्नी साक्षी के रूप में मौजूद थीं। उन्हीं दिनों से यह महात्मा रवीन्द्र साहब कहलाने लगे। इस बात की पुष्टि रवीन्द्र साहब द्वारा रचित भजन-सुधा-सार नामक पुस्तक करती हैं।
रवीन्द्र के गुरु बहुत हैं, तामे तीन महान। अर्जुन बौआ सदानन्द, तीनों एक समान।।
अर्जुन ने कंठी दिया, बौआ दीन्हौं नाम। सदानन्द ने वचन दिया, कीन्हों आप समान ।। (भजन-सुधा-सार-14,15 रवीन्द्र साहब)
जब ये मैट्रिक पास कर ट्रेनिंग पास किये। उसके बाद से इनकी संगति सद्गुरु बौआ साहब से हो गई। उनके सानिध्य में रहकर ये बहुत शास्त्रों का अध्य्यन किये। जैसे:- वेद, शास्त्र, पुराण, गीता, रामायण, उपनिषद, योग दर्शन, प्रेम दर्शन, कबीर साहित्य आदि सरग्रंथों का अध्ययन दर्शन किये। सद्गुरु इन्हें अपने साथ सतसंग में ले जाया करते थे। 1969 ईस्वी से ये भी प्रवचन देना शुरू किये। इनका प्रवचन बड़ा ही आकर्षण हुआ करता था। संत संगी लोग इन्हें बहुत चाहते थे। कहीं-कहीं सद्गुरु ने इन्हें अकेले किसी सतसंग में भेज देते थे। सतसंगी लोग इनका वचन सुनकर मनमुग्ध हो जाते थे। और कहा करते थे, इनका प्रवचन तो पूज्य सरकार जैसा होता हैं।
मेरे गुरुवर की कृपा से सब काम हो रहा हैं। करते हो मेरे साहब मेरा नाम हो रहा हैं।टेक। पतवार के बिना ही मेरी नाव चल रही हैं। हैरान है जमाना मंजिल भी मिल रही हैं।। करता नहीं हूंँ कुछ भी सब काम हो रहा है।।1।। मुझे हर डगर डगर पर तू ने दिया सहारा। मेरी जिंदगी बदल दी तूने करके एक इशारा।। एहसान पर तेरा ये एहसान हो रहा हैं।।2।। तूफान आंधियों में तूने ही मुझको थामा। तुम हरि बनके आये मैं जब बना सेवक।। तेरा कर्म यूं आदित्य पे खुलेयाम हो रहा है।।3।।
हमलोग इनके सतसंग में बैठते थे, इनसे तरह-तरह के प्रश्नों का उत्तर सुनकर मुग्ध हो जाते थे। एक दिन मैंने इनसे पूछा कृपा किसे कहते हैं? इन्होंने कहा तीन चीज होता हैं, मायाधीन मायातीत और मायाधीश। जो माया के अधीन है वह मायाधीन हैं। जैसे:- जीव, मनुष्य। जिसने माया पर विजय प्राप्त कर लिया, वे मायातीत हैं, जैसे:- महापुरुष, संत, साधू। मायाधीश स्वयं परमात्मा हैं। जीव चौरासी लाख योनियों में भटकता है, जीव को बहुत कष्टों में परे जानकर भगवान उन्हें मनुष्य देह प्रदान करते हैं। मनुष्य देह में मेरा भजन कर मेरी ओर घूमे जिससे उसका कष्ट दूर हो जाय। यह भगवान की कृपा हुई।
कबहुँक करि करुणा नर देही, देत ईथ विन हेत स्नेही। - रामायण
भगवान ने मनुष्य को आंख, कान, नाक आदि दिये हैं सब भगवान कृपा हुई। जब संत गुरु मिल जायें, उसे मायाधीश की कृपा समझो। उनके बचन को मानकर उनके अनुसार चलने पर लोग की सदगति हो जाती हैं यही मायाधीश की कृपा हैं।
जो व्यक्ति भगवान का भजन सप्रेम करता हैं कभी किसी समय पल भर के लिए भगवान से जुदा नहीं रहता भगवान उसे अपनी शक्ति प्रदान करते हैं। वह भी भगवान जैसा हो जाता हैं, जैसे:- शिव, ब्रह्मा, हनुमान, अर्जुन आदि। वह भी लोगों पर कृपा कर लोगों की कष्ट से छुटकारा दिलाता हैं। इसी को कृपा कहते हैं। जैसे:- हनुमान बहुतों को मारकर बहुत बड़ा भक्त हैं। अर्जुन बहुतों को मारकर बहुत बड़ा भक्त हैं। ये लोग मारे नहीं बल्कि कृपा कर लोगों को दुष्टों से बचाया। इसी को कृपा करते हैं।
परम पूज्य संत शिरोमणि रवीन्द्र साहब जी सद्गुरु बौआ साहब की कृपा से जड़ी बूटी भी बांँटते हैं जिससे बहुतों को बीमारी छूट गई। कितने को पुत्र रत्न प्राप्त हुआ। मैंने देखा एक दिन एक व्यक्ति जों कांँटा का रहने वाला हैं वह कुछ चावल, दाल, सब्जी, कुछ बर्तन और कपड़ा लेकर आया। मैंने पूछा क्या काम है तो उन्होंने कहा मेरा घर कांँटा हैं। मुझको पुत्र नहीं था। इनकी जड़ी खाया तो मुझे पुत्र हुआ है, मैं हूं सांकट इसीलिए यहीं आकर मैं साधु भंडारा करूंगा। इन्हीं के घर (कबीर सदन) पर भंडारा हुआ।
रे भाई कर गुरु से प्रेम अमृत बरसेगा। रे भाई कर गुरु से प्रेम अमृत बरसेगा। दया धर्म हृदय में रखना, दीन दुखी का सेवा करना। करना सत्यकाम अमृत बरसेगा।। रे भाई..... सच कहो और मीठा बोलो, ज्ञान पूंजी हृदय पठ खोलो। करो उपकार अमृत बरसेगा।।रे भाई........ सच्चा प्यार आदित्य गुरु से करना, दुनियां के भय से कभी न डरना। करो न तुम तकरार अमृत बरसेगा।।रे भाई........
दिल्ली ले गया वहां की दवाई चली जड़ी भी खाया बच गया लेकिन वह उस बात को भूल गया। दो तीन साल के बाद फिर वैसी ही दशा हो गई, फिर उनके पास उसकी बहन आई ये जड़ी दिये फिर ठीक हो गया इस बार इनको बुलाकर अपने घर ले जाकर भण्डारा किया। ऐसी इनकी ख्याति हैं।
मन वाणी और बुद्धि परे, कबीर रूप तुम्हार। नेति नेति जे वेद कह, अविगत अकथ अपार।। (भजन-सुधा-सार-68 रवीन्द्र साहब)
यह विद्वान हैं। इन्होंने कई पुस्तक की रचना भी की हैं। (1) हमारे सद्गुरु बौआ साहब, (2) श्री बौआ चालीसा, (3) गुरुवंदना, (4) स्वांसज्ञान, (5) भजन गंगा, (6) भजन सुधा सार। ऐसे सत्य निष्ठ परम पूज्य संत शिरोमणि महात्मा सद्गुरु रवीन्द्र साहब को पाके हम धन्य हैं।
!!आरती!!
रवीन्द्र साहब की है कहानी, बरसों से भी पुरानी।। हे ज्ञान का ये सागर, संतों की सत्य वाणी।। यह अखंड ज्योति है, आदित्य की आरती हैं।। हेमंत नई पुरानी, साहब की अद्भुत कहानी।।
लेखक परिचय
आदित्य आर्य सिन्हा पिता:- शशि कुमार सिंह माता:- श्रीमती किरण देवी जन्म तिथि:- 18/ 05/ 1997 पता:- कबीर सदन पूरानानकार बलहा, पोस्ट:- थरमा, अंचल:- गायघाट जिला:- मुजफ्फरपुर, बिहार, पिन कोड:- 847107 मो०:- 7547840542,8825191864 Email.:- sinhaaditya995@gmail.com Webside:- adityaryasinha.blogspot.com
पुस्तक उपलब्ध
(1) हमारे सद्गुरु बौआ साहब (2) श्री बौआ चालीसा (3) गुरुवंदना (4) स्वांसज्ञान (5) भजन गंगा (6) भजन सुधा सार।
कबीर सदन विचार प्रचार ट्रस्ट
सचिव/ संचालक आदित्य आर्य सिन्हा 7547840542
अध्यक्ष व संस्थापक महात्मा सद्गुरु श्री रवीन्द्र साहब कबीर सदन पूरानानकार बलहा, पोस्ट:- थरमा, अंचल:- गायघाट, जिला:- मुजफ्फरपुर, बिहार (847107)
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ßahut sundar
ReplyDeletesaheß ßandagi
ReplyDeleteसद्गुरु रवीन्द्र साहब जी की जीवनी आपके अलावा और कोई लिख ही नहीं सकता है सप्रेम साहब बन्दगी
ReplyDeleteBahut achcha
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