याद है मुझको वो सारी बातें


याद हैं मुझको वो मोटी ऊंगलियाँ

जो चलना मुझको सिखाती थी

और मुझको गोद में लेना

जब चलते चलते थक जाती थी

कैसे भूलू उन चोटों को मैं


जिसने मुझे रूलाया था

आपने प्यार से हाथ क्या फेरा

और मैने मुस्काया था।


याद है मुझको वो लुका छिपी

जिसमे आपको चोर बनाती थी

ढूंढो अब दादी माँ कहकर

बेड के नीचे छिप जाती थी


सारी खुशियाँ फिर छिप गई

चोर न जाने कहाँ गया?

गुड़िया खुद अब चोर को ढूंढे

और चोर तारों में छिप गया।


याद है सारी वो खेल की बातें

जो आपने थी समझाई हुई

बेड या दरवाज़े बस यहीं छिपेंगे

तारों की कहाँ बात हुई?


याद है मुझको वो सारी बातें

जो आपने मुझे सिखाई थी

लेकिन ये दुनिया नही है वैसी


जैसी आपने मुझसे बतायी थी

कैसे रोकू आँसू अपने मैं

कैसे भूलू जज़्बातों को

जिंदगी ऐसी चल रही है

जैसे सांसे मिल गई हो लाशों को।।

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आधार हो मेरे दादाजी आशिर्वाद से में लिखता रहूंँगा।

संस्कारों की जो राह बनाई उस पर सदा चलता रहूँगा।।


मिस यू दादी मां एवं दादाजी

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