मित्रता कैसी होनी चाहिए।
⚘️⚘️⚘️⚘️⚘️⚘️मित्रता⚘️⚘️⚘️⚘️⚘️⚘️
हम स्वयं के पश्चात मित्रता शब्द के साथ सबसे अधिक छल करते हैं किंतु मित्रता कैसी होनी चाहिए.........
तुलसी तृण जलकूल कौ, निर्बल निपट निकाज।
कै राखै कै संग चलै, बाँह गहे की लाज ।।
तुलसीदास जी ने दूब, अर्थात घास के गुणों में मानवीकरण कर अद्भुत संदेश का प्रतिपादन किया है। वे कहते हैं कि नदी के किनारों पर स्वतः ही पनपने वाली घास अत्यंत निर्बल एवं निकाज, अर्थात किसी काम में न आने योग्य प्राय: अनुपयोगी होती है। न ही उसमें बल होता है, न ही वह मनुष्य के किसी काम ही आती है, किंतु यदि कोई व्यक्ति नदी में डूबने लगता है और उस घास को पकड़ लेता है, तो वहीं निर्मल एवं अयोग्य घास संकटग्रस्त व्यक्ति को बचाने का हर संभव प्रयास करती है। अंततः वह घास या तो व्यक्ति की रक्षा करने में सफल हो जाती है और व्यक्ति के प्राणों की रक्षा कर लेती है, अथवा टूटकर व्यक्ति के साथ ही वेग में बह जाती है। दोनों ही स्थितियों में वह उसका साथ नहीं छोड़ती है।
तुलसीदास जी ने इस दोहे के माध्यम से यह संदेश दिया है कि व्यक्ति का चरित्र भी इस घास की भांति होना चाहिए। सच्ची मित्रता यही है, जहां मित्र की रक्षा हेतु हमें पूरी निष्ठा से अपना सर्वस्व लगा देना चाहिए, अर्थात उनकी विपत्ति को अपनी विपत्ति समझ कर गले लगा लेना चाहिए और अपने प्रिय जनों को विपत्ति से उबारने के लिए हर संभव प्रयत्न करना चाहिए।
जय श्री राम⚘️⚘️⚘️
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