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Showing posts from December, 2022

भरी सभा में सुधारों की, बात करते हैं।

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की नज़र नहीं है, नज़ारों की बात करते हैं। ज़मीन पर चाँद-सितारों की, बात करते हैं। वो हाथ जोड़कर, बस्ती को लुटने वाले। भरी सभा में सुधारों की, बात करते हैं

नये समय की नयी चुनौती

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नये समय की नयी चुनौती प्रश्न पुराने, यक्ष ! बदल दो ! वर्तमान पर चर्चा करती एक सभा है अंधी बहरी कोई कहता नहीं लोक से अब इसका अध्यक्ष बदल दो ! राजाओं के सम्मोहन में कब तक बैठोगे पैताने थोड़ी हिम्मत करो नशे से - जागो ,अपना पक्ष बदल दो ! सबको आया नहीं कभी भी हर युग में प्रासंगिक रहना यदि वे अपने तीर बदल दें तुम भी अपने वक्ष बदल दो ! जहाँ जहाँ भी पड़ें सुनायी तुमको गुप्तचरी पदचापें बिना बताये उन महलों को अपने अपने कक्ष बदल दो !

न था कोई कुसूर मगर, गुनहगार हो गए।

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यारों हम तो साजिशों के, शिकार हो गए, न था कोई कुसूर मगर, गुनहगार हो गए। कर दी फ़ना हमने तो सारी हसरतें अपनी, फिर भी अपनों की नज़र में, बेकार हो गए। अब तो बनते हैं रिश्ते हैसियत के हिसाब से, इधर तो सब के सब दौलत के, यार हो गए। यारो न भाती किसी को भी नेकियां अब तो, अब तो छल कपट के सारे, सरदार हो गए। खुश हैं हम तो यारा सह के आफ़तों का दौर, इसमें कितने न जाने चेहरे, नमूदार हो गए। खुशामद न करिये 'आदि' इन बड़े लोगों की, वो तो गवा के ज़मीर अपना, खुद्दार हो गए।