भरी सभा में सुधारों की, बात करते हैं।

की नज़र नहीं है, नज़ारों की बात करते हैं। ज़मीन पर चाँद-सितारों की, बात करते हैं। वो हाथ जोड़कर, बस्ती को लुटने वाले। भरी सभा में सुधारों की, बात करते हैं

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