न था कोई कुसूर मगर, गुनहगार हो गए।
यारों हम तो साजिशों के, शिकार हो गए,
न था कोई कुसूर मगर, गुनहगार हो गए।
कर दी फ़ना हमने तो सारी हसरतें अपनी,
फिर भी अपनों की नज़र में, बेकार हो गए।
अब तो बनते हैं रिश्ते हैसियत के हिसाब से,
इधर तो सब के सब दौलत के, यार हो गए।
यारो न भाती किसी को भी नेकियां अब तो,
अब तो छल कपट के सारे, सरदार हो गए।
खुश हैं हम तो यारा सह के आफ़तों का दौर,
इसमें कितने न जाने चेहरे, नमूदार हो गए।
खुशामद न करिये 'आदि' इन बड़े लोगों की,
वो तो गवा के ज़मीर अपना, खुद्दार हो गए।
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