मुझे कुदरत की करनी, साफ़ दिख रही है

बेबसी की तस्वीर, साफ़ दिख रही है लोगों का काला, इतिहास लिख रही है मर रही है इंसानियत कदम दर कदम, बस दिलों में सब के, ख़ाक दिख रही है मज़लूम बचाये कैसे अपनों की ज़िंदगी, इधर दौलत के दम पे, सांस बिक रही है हम बिखरे रिश्तों को कब तक संभालें, अब सभी के दिल में, फांस दिख रही है लुट रहा है आदमी ही आदमी के हाथों, लुटेरों की अब तो, हर ज़ात दिख रही है अब भी वक़्त बाक़ी है सुधर जाओ 'आदि' मुझे कुदरत की करनी, साफ़ दिख रही है

Comments

Popular posts from this blog