हर भाव समेटे मैं हूँ चला
सीधा हूँ सटीक सरल हूँ मैं, मत छेड़ मुझे कि गरल हूँ मैं। हर भाव समेटे मैं हूँ चला, पत्थर भी मैं हूँ, तरल हूँ मैं। हर कदम नई है राह मेरी, तेरे मन पलता पहल हूँ मैं। सारी दुनिया चला संग लिये, भर आँख नमी भी सजल हूँ मैं। आँखों में रहा मैं तो बसता, सपनों का देखो महल हूँ मैं। मैं शब्द सारथी बन के चला, हर भाव उकेरे सफल हूँ मैं। ना काया देख तू आँका कर, ले हाथ कलम हूँ सबल हूँ मैं। ना अदना शब्द तू मान मुझे, ये जग सारा ही सकल हूँ मैं।