दुनियां की नजर मुझ पर मां
दुनियां की नज़र मुझ पर माँ
कहीं खो ना जांउ सन्नाटे में।।
हालातों से डर जाता हूँ मैं....
अंगार की तरह क्यों चूभता माँ
वे लोग क्यों बदल जातें हैं।।
छोटे से सपने मेरे माँ
खूशियों से ग़ले लग़ाने की।।
अब उठती हैं महक माँ
सुखे ग़ुलाबो के अफ़साने की।।
बहुत हुआ देवता क्रूर नहीं माँ
आओ "आदित्य" मंज़िल दूर नहीं।।
::- आदित्य आर्य सिन्हा
(रचनाकार)
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