अब आदित्य ना सच बोलो

बस नज़र नज़र की बात है। बस शहर शहर की बात है। ये समय सुहाना कितना है, बस पहर पहर की बात है। धरा ये कितनी लाल रही, बस समर समर की बात है। किसने कितनी है पी रखी, बस असर असर की बात है। सच एक भिखारी बन बैठा, बस अगर मगर की बात है। विषदंत छुपा सब काट रहे, बस ज़हर ज़हर की बात है। पथभ्रष्ट है पथद्रष्टा भी, बस डगर डगर की बात है। यौवन भी रवानीहीन रहा, बस लहर लहर की बात है। कलम भी कब है सच कहती, बस इधर उधर की बात है। अब आदित्य ना सच बोलो, बस कसर कसर की बात है। adityaaryasinha.blogspot.com

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